aastha
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हंसरै में शिर पातु, कूष्माण्डे भवनाशिनीम् ।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम् ॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम ।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु ॥